जीडीपी में गिरावट का क्या अर्थ है इसका आहोगाप पर क्या असर ;knowledge
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (भारत जीडीपी विकास दर) (अप्रैल-जून) में देश की आर्थिक विकास दर घटकर महज 5 प्रतिशत रह गई है, जो साढ़े छह साल का सबसे निचला स्तर है। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में आर्थिक विकास दर 5.8 प्रतिशत रही है। जीडीपी में गिरावट का हम पर सीधा असर होता है। आमदनी से लेकर रोजगार तक पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
आपको बता दें कि जीडीपी में गिरावट सबसे ज्यादा गरीबों को प्रभावित करती है, क्योंकि भारत अधिकांश सामाजिक असमानताओं वाले देशों में है। हर बार जीडीपी में गिरावट का असर आपकी जेब पर पड़ता है। इसका औसत आमदनी पर बुरा प्रभाव पड़ता है और रोजगार के कम अवसर की ओर संकेत करता है।
GDP के कमजोर आंकड़ों के प्रभाव को विस्तार से बताते हुए इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूड ऑफ डिवेलपमेंट रिसर्च में इकोनॉमिक्स के प्रफेसर आर नागराज कहते हैं कि 2018-19 के प्रति व्यक्ति मासिक आय 10,534 रुपये के आधार पर, वार्षिक जीडीपी 5 पर्सेंट रहने का मतलब होगा कि प्रति व्यक्ति आय वित्त वर्ष 2020 में 526 रुपये बढ़ेगी।
उदाहरण के तौर पर समझाते हुए उन्होंने कहा कि अगर जीडीपी 4 पर्सेंट की दर से बढ़ती है तो आमदनी में वृद्धि 421 रुपये होगी। इसका मतलब है कि विकास दर में 1 प्रतिशत की कमी से प्रति व्यक्ति औसत मासिक आमदनी 105 रुपये कम हो जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो यदि वार्षिक जीडीपी दर 5 से गिरकर 4 पर्सेंट होती है तो प्रति माह आमदनी 105 रुपये कम होगी। यानी एक व्यक्ति को सालाना 1260 रुपये कम मिलेंगे। जीडीपी तिमाही दर तिमाही कम होते हुए 5 पर्सेंट पर आ गया है तो जो 2018-19 की पहली तिमाही में 8 पर्सेंट था। ज्यादातर इकोनमिक रिसर्च फर्म्स ने पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी का अनुमान लगाया है। आम आदमी पर जीडीपी के कमजोर आंकड़ों के असर के बारे में नागराज ने कहा कि जीडीपी में गिरावट का मतलब है कि प्रति व्यक्ति आमदनी पर आनुपातिक कमी आगी। अर्थव्यवस्था में और अधिक असमानता होगी। अमीरों के मुकाबले गरीबों पर इसका अधिक असर हो सकता है। उन्होंने कहा, 'गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती है। जीडीपी में गिरावट से रोजगार दर में भी कमी आ गई।
आपको बता दें कि जीडीपी में गिरावट सबसे ज्यादा गरीबों को प्रभावित करती है, क्योंकि भारत अधिकांश सामाजिक असमानताओं वाले देशों में है। हर बार जीडीपी में गिरावट का असर आपकी जेब पर पड़ता है। इसका औसत आमदनी पर बुरा प्रभाव पड़ता है और रोजगार के कम अवसर की ओर संकेत करता है।
GDP के कमजोर आंकड़ों के प्रभाव को विस्तार से बताते हुए इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूड ऑफ डिवेलपमेंट रिसर्च में इकोनॉमिक्स के प्रफेसर आर नागराज कहते हैं कि 2018-19 के प्रति व्यक्ति मासिक आय 10,534 रुपये के आधार पर, वार्षिक जीडीपी 5 पर्सेंट रहने का मतलब होगा कि प्रति व्यक्ति आय वित्त वर्ष 2020 में 526 रुपये बढ़ेगी।
उदाहरण के तौर पर समझाते हुए उन्होंने कहा कि अगर जीडीपी 4 पर्सेंट की दर से बढ़ती है तो आमदनी में वृद्धि 421 रुपये होगी। इसका मतलब है कि विकास दर में 1 प्रतिशत की कमी से प्रति व्यक्ति औसत मासिक आमदनी 105 रुपये कम हो जाएगी। दूसरे शब्दों में कहें तो यदि वार्षिक जीडीपी दर 5 से गिरकर 4 पर्सेंट होती है तो प्रति माह आमदनी 105 रुपये कम होगी। यानी एक व्यक्ति को सालाना 1260 रुपये कम मिलेंगे। जीडीपी तिमाही दर तिमाही कम होते हुए 5 पर्सेंट पर आ गया है तो जो 2018-19 की पहली तिमाही में 8 पर्सेंट था। ज्यादातर इकोनमिक रिसर्च फर्म्स ने पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी का अनुमान लगाया है। आम आदमी पर जीडीपी के कमजोर आंकड़ों के असर के बारे में नागराज ने कहा कि जीडीपी में गिरावट का मतलब है कि प्रति व्यक्ति आमदनी पर आनुपातिक कमी आगी। अर्थव्यवस्था में और अधिक असमानता होगी। अमीरों के मुकाबले गरीबों पर इसका अधिक असर हो सकता है। उन्होंने कहा, 'गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती है। जीडीपी में गिरावट से रोजगार दर में भी कमी आ गई।
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