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बुधवार, 11 सितंबर 2019

ये अद्भुत स्मरण शक्ति मिल सकती है आपको भी

अद्भुत व्यक्तित्व और फोटोग्राफिक स्मरण शक्ति
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अद्भुत व्यक्तित्व और फोटोग्राफिक स्मरण शक्ति

स्वामी विवेकानंद अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी थे इसमें कोई शक नहीं। पर एक विद्वान्, दार्शनिक, प्रभावशाली वक्ता होने के अलावा उनकी एक और सबसे खास बात थी उनकी स्मरण शक्ति। उनमें फोटोग्राफिक (चित्रित स्वरूप में चीजों को संजोना) स्मरण शक्ति थी, जिसके कारण केवल एक बार पढ़कर वो कोई भी चीज याद रख सकते थे।
विश्वकोश याद करना
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विश्वकोश याद करना

सुनने में यह आश्चर्यजनक लग सकता है, पर सच है। उनकी स्मरण शक्ति इतनी मजबूत थी कि इस तरह मोटी से मोटी किताब भी एक बार में वो पढ़ भी सकते थे और केवल पढ़ने मात्र से उसे याद भी रख सकते थे। उन्होंने कई एनसाइक्लोपीडिया (विश्वकोश या सारसंग्रह) याद किए थे और अपनी मौत से कुछ समय पूर्व गणित विषय पर विश्वकोश पढ़ रहे थे।
गणित का विश्वकोश
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गणित का विश्वकोश

बेलूर मठ में विवेकानंद के साथ रह रहे उनके एक तत्कालीन शिष्य और भिक्षु के अनुसार गणित का जो विश्वकोश स्वामी जी लेकर आए थे वो इतनी मोटी थी कि एक बार में क्या, कितनी भी बार में किसी के लिए पूरा पढ़ना संभव नहीं था। पर स्वामी जी ने उसे पूरा पढ़ा ही नहीं, बल्कि कंठस्थ कर लिया।
अद्भुत स्मरण शक्ति का राज
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अद्भुत स्मरण शक्ति का राज

उनकी इस अद्भुत अध्ययन क्षमता और स्मरण शक्ति से आश्चर्य प्रकट कर रहे शिष्यों को ये नहीं पता था कि इससे पूर्व भी वो ऐसी कई किताबें और विश्वकोश पढ़ चुके थे। उनकी इस अद्भुत स्मरण शक्ति का राज था ब्रह्मचर्य पालन। अध्यात्म में संभोग को स्मरण शक्ति और कार्यक्षमता के नाश का एक कारण माना जाता है। ऐसा वीर्य नाश होने के कारण होता है।
भक्तिसिद्धांत सरस्वती
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भक्तिसिद्धांत सरस्वती

इसे मानने वाले आध्यात्मिक लोग इस तथ्य को साबित करने के लिए विवेकानंद के अलावा कई और उदाहरण भी देते हैं। इन्हीं मे एक थे ‘भक्तिसिद्धांत सरस्वती’। इन्होंने भी आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया था और इनकी स्मरण शक्ति भी बहुत हद तक स्वामी विवेकानंद की तरह थी। इन्होंने अंग्रेजी का पूरा शब्दकोश केवल एक बार में पढ़कर याद कर लिया था।
आजीवन ब्रह्मचर्य
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आजीवन ब्रह्मचर्य

1898 में अपने एक शिष्य शरत चंद्र चक्रवर्ती के साथ रिकॉर्ड किए गए एक वार्तालाप में विवेकानंद ने बताया है कि उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लिया था। उनकी सोच, विचार और शब्द हर प्रकार से दैहिक वासना से मुक्त थे। इसलिए उनकी मानसिक शक्ति विशेष रूप से प्रभावशाली बनी। उनकी अध्ययन क्षमता और मजबूत स्मरण शक्ति इसी कारण थे।
35 साल की उम्र में याद थे 10 सारसंग्रह
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35 साल की उम्र में याद थे 10 सारसंग्रह

35 साल की उम्र तक वो 10 सारसंग्रह याद कर चुके थे। बेलूर मठ में जब वो 11वां विश्वकोश (गणित का) लेकर आए तो उनके शिष्यों के लिए यह आश्चर्य की बात थी, हालाकि तब तक उन्हें यह नहीं पता था कि 10 वो पहले ही कंठस्थ कर चुके थे।
एक बार पढ़ने पर हमेशा के लिए याद हो जाती थीं चीजें
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एक बार पढ़ने पर हमेशा के लिए याद हो जाती थीं चीजें

इसमें ये जानना और आश्चर्यपूर्ण है कि किसी भी मनुष्य को अमूमन पढ़ी या याद की हुई कोई चीज कुछ समय तक के लिए ही स्मरण में रहती है, लेकिन स्वामी विवेकानंद के लिए ऐसा नहीं था। एक बार पढ़ने के बाद उन्हें हर चीज हमेशा के लिए याद हो जाती थी।
विश्वकोश याद कर आश्चर्यचकित किया
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विश्वकोश याद कर आश्चर्यचकित किया

विश्वकोश याद करने पर आश्चर्यचकित अपने शिष्यों को उन्होंने अपनी पढ़ी हुई कोई भी चीज, किसी भी जगह से पूछने की चुनौती देते हुए ये दावा किया था कि वो हर प्रश्न का उत्तर अवश्य दे देंगे। उनके शिष्यों ने तब उनसे किताबों के कोने-कोने से प्रश्न किए, लेकिन छोटी-से-छोटी बात और कठिन-से-कठिन सवाल के भी उन्होंने सही और सटीक उत्तर दिये।
एक बार पढ़ना भी था गहन अध्ययन के समान
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एक बार पढ़ना भी था गहन अध्ययन के समान

इस घटना ने साबित कर दिया था कि उनका एक बार पढ़ना भी गहन अध्ययन के समान था, यहां तक कि किताबों के छोटे-छोटे कॉलम पढ़ने में गैर-महत्वपूर्ण लगने पर हम जिसे छोड़ दिया करते हैं, उनके उस अध्ययन में वो सबकुछ स्मरणीय था।
स्वामी अखंडानंद
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स्वामी अखंडानंद

एक बार जब मेरठ में वो अपने शिष्यों के साथ थे, स्वामी अखंडानंद भी वहां आए। विवेकानंद ने उनसे वहीं की लाइब्रेरी से किताबें लाने को कहा। अखंडानंद बैंकर, दार्शनिक और राजनीतिज्ञ ‘सर जॉन लबॉक’ की एक किताब लेकर आए जिसके कई खंड थे।
लाइब्रेरियन की टिपण्णी
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लाइब्रेरियन की टिपण्णी

सबके आश्चर्य का तब ठिकाना ना रहा जब विवेकानंद ने उसे एक दिन में ही पढ़ लिया और अखंडानंद से उसे लौटाकर उसका दूसरा खंड लाने को कहा। अखंडानंद ने इतनी जल्दी-जल्दी हर किताब लौटायी कि लाइब्रेरियन ने ये टिप्पणी दे दी कि स्वामी जी बिना पढ़े ही किताबें लौटा रहे हैं।
निरुत्तर लाइब्रेरियन
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निरुत्तर लाइब्रेरियन

अखंडानंद से इस टिप्पणी के विषय में जानने के बाद विवेकानंद खुद लाइब्रेरी गए और लाइब्रेरियन से कहा कि उनके द्वारा पढ़कर लौटायी गई किताबों से वो उनसे किसी भी जगह से, कुछ भी पूछे। लाइब्रेरियन ने प्रश्न किए और उसे सबके उत्तर मिले। आखिरकार उसने अपनी हार मान ली।
किताबों का हर वाक्य और परिच्छेद रहता था याद
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किताबों का हर वाक्य और परिच्छेद रहता था याद

बाद में विवेकानंद ने अखंडानंद से बताया कि वो जब भी कोई किताब पढ़ते हैं, ना सिर्फ उसके शब्द, बल्कि हर वाक्य और हर परिच्छेद उन्हें याद हो जाता है।
आम इंसानों के लिए मुश्किल है इस स्मरण शक्ति को पाना
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आम इंसानों के लिए मुश्किल है इस स्मरण शक्ति को पाना

विवेकानंद की ये अपनी प्रतिभा थी जो आम इंसानों के लिए पाना बेहद मुश्किल है। हालांकि रोजाना की जिंदगी में कुछ ऐसी चीजें जरूर हैं जिन्हें अपनाकर आप अपनी स्मरण क्षमता को बेहतर बना सकते हैं। आइए जानते हैं क्या हैं वो।
एकाग्रता
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एकाग्रता

जरूरत, इंद्रिय-नियंत्रण या आत्मबल, अभ्यास और एकाग्रता, ये चार ऐसी चीजें हैं जो आपके मस्तिष्क को सक्षम बनाती हैं। विवेकानंद के अनुसार इंसान अपनी 90 प्रतिशत सोच की शक्ति को यूं ही बर्बाद कर देते हैं।
एकाग्रता
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एकाग्रता

किसी भी चीज को बेहतर तरीके से पूरा करने के लिए उसपर ध्यान लगाना सबसे जरूरी है। अपने मस्तिष्क को इस प्रकार विकसित कीजिए कि बेकार की चीजों पर सोचने की बजाय आप अपने प्राथमिक कार्य को एकाग्रता से करें।
एक लक्ष्य
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एक लक्ष्य

अपने जीवन में चीजों की कोई एक प्राथमिकता चुनें। वो एक सबसे महत्वपूर्ण चीज आपके लिए ऐसी होनी चाहिए जो रात में सोने से लेकर सुबह जागने तक, कोई भी काम करते हुए, कहीं भी होने पर, आपका दिल और दिमाग सिर्फ उसी को पूरा करने को लेकर सोचे।
एक लक्ष्य
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एक लक्ष्य

मतलब, आप उसके लिए हमेशा सजग रहें। इससे सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि आपका मस्तिष्क बेकार की बातें नहीं सोचेगा और इसकी ऊर्जा बर्बाद नहीं होगी, जो आपकी स्मरणशक्ति जरूर बढ़ाएगा।
एकाग्रता की स्थिति
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एकाग्रता की स्थिति

अक्सर ऐसा होता है कि हम होते कहीं और हैं, लेकिन सोच कुछ और रहे होते हैं। काम कुछ और कर रहे होते हैं, लेकिन हमारी सोच में कुछ और ही चल रहा होता है। इस तरह उस काम को हम अपनी पूरी क्षमता से नहीं कर पाते हैं, जो स्मरण से लोप होने या असफलता का कारण बनता है।
एकाग्रता की स्थिति
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एकाग्रता की स्थिति

इसलिए ज्ञानवान बनने के लिए बहुत सारी चीजें पढ़ने से ज्यादा जरूरी यह है कि जो भी पढ़ें, वह पूरे ध्यान, पूरी एकाग्रता से पढ़ी जाये। मानव मस्तिष्क की क्षमताएं असीमित हैं। इसलिए आप इसे जिस भी तरह प्रशिक्षित करते हैं, यह उसी रूप में कार्य करता है। एकाग्रता इस मस्तिष्क क्षमता को बढ़ाने का वही प्रभावशाली तरीका है, जो इसे असीमित क्षमताएं दे सकता है।

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