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सोमवार, 30 सितंबर 2019

शालिनी दुबे:knowledge

प्रारंभिक जीवन :
        शालिनी दुबे का जन्म अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में एक ईसाई अमेरिकन माता, क्रिस्टीना गेट्स, और भारतीय हिंदू पिता, राम शरण द्विवेदी, के परिवार में हुआ था। अमेरिका में जन्म लेने के कारण उनकी नागरिकता अमेरिकी है। उनकी माता बिल गेट्स की चचेरी बहन हैं और पिता भारतीय विदेश सेवा में कार्यरत रहे हैं। वैसे वे मूलरूप से कानपुर के रहने वाले है। हालांकि कुछ कारणों के चलते उनके माता-पिता में तलाक हो चुका है।

        उनके बाॅय फ्रेंड ‘दीपांशु तिवारी’ रियल एस्टेट सेक्टर के जाने माने नाम ‘श्री राजाबाबू तिवारी’ के नाती और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री ‘श्री नारायण दत्त तिवारी’ के परिवार से हैं। उनकी आरंभिक शिक्षा अमेरिका के ‘जेम्स वुड हाइस्कूल’ में ही हुई एवं उच्च शिक्षा के लिए ‘आईआईटी दिल्ली’ में बैचलर डिग्री के लिए विदेशी कोटे के तहत एडमीशन लिया। हालांकि उन्होंने कुछ कारणों के चलते यहां पढाई छोड़कर वापस अमेरिका लौट गईं। अपनी पढाई बीच में ही छोडने के बाबजूद उन्हें विश्व के चार विश्वविधालयों ने ‘डाॅक्टरेट’ की उपाधि से सम्मानित किया है।
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        शालिनी ने मात्र 16 वर्ष की आयु में अपनी खुद की सुपर मार्किट सीरीज स्टार्ट की. लेकिन व्यवसाय का कोई अनुभब न होने के कारन उनका यह स्टार्टअप सफल नहीं हो सका और सारे पैसे डूबता देख उन्होंने इस सीरीज को वालमार्ट ग्रुप को बेच दियाl इस सौदे से शालिनी $3000 डॉलर मिले. स्टार्टअप में असफलता के बाद वह नौकरी के लिए संघर्ष करने लगीं, लेकिन कम आयु होने के कारन उन्हें नौकरी नहीं मिल सकी, परिणामस्वरूप वह हताश हो गयीं।

        लेकिन उन्होंने एक बार फिर कोशिश की और वालमार्ट से मिले अपने 3000  डॉलर एक प्रमुख VPN सर्विस कंपनी में निवेश कर दिए. और बस यहीं से उनकी सफलता की शुरुआत हो गयी. उनकी उम्र इस समय 21 वर्ष है और वे इतने कम समय में ही 24000 करोड़(यह अनुमानित संपत्ति हैं) की मालकिन हैं. इसकेअलावा वे 14 लग्जरी गाडियों और 2 शानदार प्राइवेट जेट्स की भी मालकिन हैं.उन्हें बच्चे बहुत पसंद हैं. वे हर साल बच्चों के लिए लगभग2000 करोड दान में देतीं हैं। साथ ही उन्होंने 31 बच्चे गोद ले रखे हैं जिन्हें वे अपने साथ ही रखतीं हैं.
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विवाद :

        HIDEMYASS, केल्वीन क्लेन इन दोनों कंपनियो से उनपर अपार धन की वर्षा होने लगी, जो इतना ज्यादा हुआ कि सन 2013 में उन्हें फोर्बस मैगजीन द्वारा दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में शामिल कर लिया गया। पर वे फोर्बस की इस करतूत से काफी नाराज हुई और उन्होंने फोर्बस पर यह कहते हुए केस कर दिया कि किसी को भी किसी दूसरे की निजी जिंदगी में दखल देने का कोई अधिकार नहीं। कोर्ट का फैसला शालिनी दुबे के पक्ष में आया और कोर्ट ने उन्हें अधिकार दिया कि वे मीडिया में अपनी खबरों को छपने से मना कर सकती है और जिसका वे बखूबी इस्तेमाल करतीं हैं, जिसकी वजह से उनके बारे में ऑनलाइन या ऑफलाइन बहुत कम जानकारियाँ मिलती है और जो मिलती है वह न के बराबर होती है।

        बरहाल इन दोनों कंपनियो से मिली अपार सफलता के बाद वो कभी पीछे मुड़कर नहीं देखी। जिसके कारण आज वह लगभग 35 बडी कंपनियो की सायलेंट पार्टनर बन चुकी है। जिनमें लग्जरी सनग्लासेज बनाने वाली कंपनी Rayban, हवाईजहाज निर्माता Boing, हैलीकॉप्टर्स निर्माता Bell Helicopters, आटोमोबाइल कंपनी Toyota, ग्लोबल एजुकेशनल सर्च इंजन ask.com, विश्व की सबसे बड़ी एयरलाइंस Lufthansa, भारत की सबसे बड़ी एयरलाइंस Indigo, भारत की सबसे बड़ी ईकॉमर्स कंपनी Snapdeal और अन्य कई बडी कंपनियाँ शामिल है। 

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रोचक तथ्य :

• हालांकि वे ‘Simple Living and High thinking’ में विश्वास रखतीं हैं लेकिन वे लक्जरी गाडियों की बहुत शौकीन हैं। उनके बेड़े में 13 लग्जरी गाडियां और 2 शानदार प्राइवेट जेट्स हैं।
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बिजनेस टायकून होने के बाबजूद उन्होने अमेरिका की सेना और अमेरिकन एयरफोर्स में एक साल तक अपनी सेवाएं दीं हैं। वे अमेरिकी सेना की तीसरी सबसे बडी हथियार सप्लायर हैं।
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अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा उनकी बहुत इज्जत करते हैं, वे उनकी अत्यंत करीबी इंसानों में से एक हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वे इकलौती ऐसी शख्शियत हैं जिनके लिए ओबामा अपनी कुर्सी छोडकर खडे हो जाते हैं। वे आगामी अमेरिकी राष्ट्रपति के पद हेतु प्रबल दावेदार माने जा रहे ‘डोनाल्ड ट्रंप’ कीं भी बिजनेस पार्टनर हैं।
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बिजनेस टायकून होने के अलाबा उन्हें अमेरिकी सरकार ने कई महत्वपूर्ण पद दे रखे हैं। Central Intelligence Agency की cyber security विभाग कीं प्रमुख हैं। वे White House की सुरक्षा कंसल्टेंट भीं हैं।
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वे सभी कंपनियो में बतौर सायलेंट पार्टनर ही जुडती हैं और इसके बारे में उनका कहना है कि इससे उन्हें मीडिया की रिपोर्ट में आने से आजादी मिलती है और काम भी कम होता है।
 
shalini dubey बच्चों से बहुत प्रेम करतीं हैं। उन्होने 30 बच्चों को गोद ले रखा है जिन्हें वे अपने साथ ही रखतीं हैं। वे हर साल दुनियाभर के बच्चों के लिए लगभग 2000 करोड दान में देतीं हैं।
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हालीवुड का लगभग 13% बिजनेस किसी न किसी तरह से उनके हांथ से होकर जाता है।
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शालिनी दुबे “Calvin Klien” नामक कपडे के ब्रांड की ३२ % की सायलेंट पार्टनर हैं.
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आपमें से लगभग 80% लोगों के पास बैंकों का एटीएम होगा, दो प्रमुख कंपनियां मास्टरकार्ड और वीजा हैं जो कि एटीएम कार्ड बनातीं हैं. शालिनी दुबे वीजा कार्डस की भी सायलेंट पार्टनर हैं.
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इसके अतिरिक्त वे 13 अन्य कंपनियों से बतौर सायलेंट पार्टनर ही जुडी हैं जिनमें प्रीमियम सनग्लासेज बनाने वाली कंपनी ‘Rayban‘ और हवाईजहाज बनाने वाली कंपनी ‘Boing‘ भी शामिल हैं
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वे अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA की साइबर सिक्योरिटी हैड भी हैं और वे इस पद के लिए अवैतनिक सेवाएं देतीं हैं. इससे पहले वे अमेरिकन आर्मी में भी अपनी सेवाएं दे चुकीं हैं. उन्हें अमरीका की सेना के तीनों शाखाओं की ट्रेनिंग मिली है यानि कि वन वुमन आर्मी.
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उनके साथ हमेशा प्राइवेट 18 सशस्त्र बाॅडी गार्डस रहते हैं और अमेरिका भी उन्हें भारी भरकम सुरक्षा मुहैया कराता हैं जिसका कारण उनका मुस्लिम विरोधी होना हैं उनकी सुरक्षा पर अमेरिका का लगभग 10 करोड हर साल खर्च होता हैं
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वे अमेरिका की सदभावना राजदूत भी हैं. इसके अलावा वे अमेरिकन आर्मी की तीसरी सबसे बडी हथियार सप्लायर हैं. वे व्हाइट हाउस कीं सुरक्षा सलाहकार समिति की हैड भी हैं लेकिन उनकी सुरक्षा की दृष्टि से यह बात हमेशा गुप्त रखी गई.
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वे लगभग 50 बड़ी कंपनियो का लोगो रिडिजाइन कर चुकीं हैं जिसमें आपके Adidas, Samsung और यहां तक कि Facebook का नया लोगो भी शामिल हैं. इसके लिए वे भारी भरकम रकम लेतीं हैं. इसके पीछे की कहानी यह हैं कि उन्हें अमेरिकी कार्पोरेट वर्ल्ड का लकी चार्म माना जाता हैं.
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आप सभी ने शायद हुडजैकेट देखी या पहनी होगी, क्या आप जानते हैं कि यह फैशन हमें देने वाली शालिनी दुबे ही हैं.
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इसके अलावा महिलाओं की सैंडिल के ऊंची हील की वर्तमान डिजाइन कांसेप्ट उन्ही के दिमाग की उपज हैं. और लगभग 70% महिलाएं इसी कांसेप्ट की ऊंची हील की सैंडल पहनतीं हैं.
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उनके बारे में एक और दिलचस्प तथ्य यह हैं कि जिन कंपनियों की वे मालकिन हैं, उनका प्रोडक्ट कभी उपयोग नहीं करतीं.
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उन्होंने भारत में सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए 60000 डॉलर प्रधानमंत्री राहत कोष को दान में दिए थे। इसके अलावा वे गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोलने की भी घोषणा कर चुकीं हैं।
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जहां अंबानी और अडानी जैसे लोग अपनी जेबें भरने में लगे हैं, वहीं शालिनी दुबे द्वारा किया गया दान और त्याग इनको काम से भी महान बनाता हैं.
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उन्हें 31 भाषाओं का ज्ञान है जिनमें अपनी हिंदी भी हैं.

शनिवार, 28 सितंबर 2019

भगत सिंह

अमर शहीद भगत सिंह के जीवन की अनजानी बातें ;knowledge




देश की सरकार भगत सिंह को शहीद नहीं मानती है, जबकि आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिन्दुस्तानी के दिल में बसते हैं।

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भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान 

में है। उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे 

रहे थे। ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस् थे। भगत सिंह पर इन 

दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे।

भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 

को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला।

लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में भगत सिंह महात्मा गांधी द्वारा 

चलाए जा रहे अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे, जिसमें गांधी जी विदेशी समानों का बहिष्कार कर रहे थे।

14 वर्ष की आयु में ही 
भगत सिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तकें और कपड़े जला दिए। इसके बाद इनके पोस्टर 

गांवों में छपने लगे।

भगत सिंह पहले महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन और भारतीय नेशनल कॉन्फ्रेंस के 

सदस् थे। 1921 में जब चौरा-चौरा हत्याकांड के बाद गांधीजी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो 

भगत सिंह पर उसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चन्द्रशेखर आजाद के नेतृत् में गठित हुई गदर दल के हिस्सा बन गए।

उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। 9 अगस्त

1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली 8 नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से 

स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया। यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध 

है।

इस घटना को अंजाम भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ 

मिलकर अंजाम दिया था।

काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धरपकड़ तेज 

कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट्स बहाल कर दिए। भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए। वहां 

उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और कहा कि अब यहीं रहो और दूध का कारोबार 

करो।

वे भगत सिंह की शादी कराना चाहते थे और एक बार लड़की वालों को भी लेकर पहुंचे थे। 

भगतसिंह 

कागज-पेंसिल ले दूध का हिसाब करते, पर कभी हिसाब सही मिलता नहीं। सुखदेव खुद ढेर सारा दूध पी जाते और दूसरों को भी मुफ्त पिलाते।

भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ले खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ 

जब भी मौका मिलता था, फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थीं। इस 

पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे।

भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ 

अफसर जेपी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी।

क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड दिल्ली स्थित ब्रिटिश 

भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ सरकार को जगाने के 

लिये बम और पर्चे फेंके थे।

भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक

लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति 

का विषद अध्ययन किया था।

हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक 

भगतसिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्याता थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक और लेखक भी थे। 
उन्होंने 'अकाली' और 'कीर्ति' दो अखबारों का संपादन भी किया।

जे में भगत सिंह ने करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। 
जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख परिवार को लिखे गए

पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं।

अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है। उन्होंने लिखा कि मजदूरों 

का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी 

में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था 'मैं नास्तिक क्यों हूं'? जेल में भगत सिंह  उनके साथियों ने 

64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग 

दिए थे।

23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव राजगुरु को फांसी दे दी गई। फांसी पर जाने से 

पहले वे 'बिस्मिल' की जीवनी पढ़ रहे थे जो सिंध (वर्तमान पाकिस्तान का एक सूबा) के एक प्रकाशक भजन 

लाल बुकसेलर ने आर्ट प्रेस, सिंध से छापी थी।

पाकिस्तान में शहीद भगत सिंह के नाम पर चौराहे का नाम रखे जाने पर खूब बवाल मचा था। लाहौर 

प्रशासन ने ऐलान किया था कि मशहूर शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक किया जाएगा। फैसले 

के बाद प्रशासन को चौतरफा विरोध झेलना पड़ा था।