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बुधवार, 13 नवंबर 2019

जीडीपी की ग्रोथ घटने से आप पर पड़ता है क्या असर?

नई दिल्ली: देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर का शुक्रवार को जारी किया गया. इस साल अप्रैल से जून तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर घटकर 5 फीसदी रह गई. आर्थिक वृद्धि दर को जीडीपी का ग्रोथ रेट भी कहते हैं. सवाल है कि जीडीपी रेट में कमी आने के मायने क्या हैं, इसका आप पर क्या असर पड़ता है? आइए इन सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं.

गरीब लोगों पर ज्यादा मार
जीडीपी रेट में गिरावट का सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर पड़ता है. भारत मे आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा है. इसलिए आर्थिक वृद्धि दर घटने का ज्यादा असर गरीब तबके पर पड़ता है. इसका असर आपको वॉलेट पर भी पड़ता है. इसकी वजह यह है कि लोगों की औसत आय घट जाती है. नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार घट जाती है. 

इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर आर नागराज ने जीडीपी ग्रोथ में कमी के असर को एक उदाहरण से समझाने की कोशिश की है. उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2018-19 में प्रति व्यक्ति मासिक आय 10,534 रुपये थी. सालाना 5 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का मतलब है कि वित्त वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 526 रुपये बढ़ेगी.

घट जाती है प्रति व्यक्ति आयनागराज ने कहा, "अगर प्रति व्यक्ति मासिक आय 4 फीसदी बढ़ती है तो आय में सिर्फ 421 रुपये की वृद्धि होगी. इसका मतलब है कि ग्रोथ रेट में 1 फीसदी की कमी से प्रति व्यक्ति मासिक आय 105 रुपये तक घट जाती है. दूसरे शब्दों में जीडीपी का सालाना ग्रोथ रेट 5 फीसदी से घटकर 4 फीसदी पर आ जाने का मतलब आय में हर महीने 105 रुपये की कमी है."
इस हिसाब से एक साल में एक व्यक्ति को आय में 1,260 रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा. यह गौर करने वाली बात है कि जीडीपी की ग्रोथ तिमाही दर तिमाही घट रही है. इस साल अप्रैल-जून तिमाही में यह 5 फीसदी पर आ गई है. वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में यह 8 फीसदी थी. इकनॉमिक रिसर्च से जुड़ी ज्यादातर संस्थाओं ने पूरे वित्त वर्ष के लिए जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को घटा दिया है.

ग्रोथ रेट छह साल में सबसे कम रहने के आसारइंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने 28 अगस्त को वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को 7.3 से घटाकर 6.7 फीसदी कर दिया है. यह छह साल में सबसे कम ग्रोथ है. उसने कहा है कि चालू वित्त वर्ष कमजोर ग्रोथ वाला लगातार तीसरा साल होगा.

मूडी इनवेस्टर्स सर्विस ने वित्त वर्ष 2019-20 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 6.4 फीसदी रहने की उम्मीद जताई है. उसने कहा कि इस दौरान अर्थव्यवस्था पर घरेलू और बाहरी दबाव बने रहने के आसार हैं.

मैन्यूफैक्चरिंग ग्रोथ रेट घटने से बिगड़े हालातइक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री आदिती नायर ने कहा कि वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी और जीवीए की ग्रोथ की रफ्तार अनुमान के मुकाबले काफी कम रही है. मैन्यूफैक्चरिंग जीवीए की ग्रोथ घटने से ऐसा हुआ है. दूसरे सेक्टरों का प्रदर्शन कमोबेश उम्मीद के मुताबिक रहा है.

जीडीपी ग्रोथ घटने से आम आदमी पर पड़ने वाले असर के बारे में नागराज ने कहा कि जीडीपी में कमी का मतलब है कि प्रति व्यक्ति आय में भी उसी अनुपात में कमी आएगी. उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में असामनता की बड़ी खाई को देखते हुए इस बात की आशंका है कि जीडीपी में कमी का असर अमीर लोगों के मुकाबले गरीब लोगों पर ज्यादा पड़ेगा.

नागराज ने कहा, "इससे गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या बढ़ सकती है. इसके अलावा रोजगार की दर में भी गिरावट आ सकती है." स्थिर मूल्य (2011-12) पर वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में जीडीपी 35.85 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है. वित्त वर्ष 2018-19 की पहली तिमाही में यह 34.14 लाख करोड़ रुपये थी. इस तरह ग्रोथ रेट 5 फीसदी रहा.

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019

मिल्खा सिंह का जीवन:motivate

मिल्खा सिंह के लिए इमेज परिणाम
जन्म: 20 नवम्बर 1929, गोविन्दपुरा (पाकिस्तान)
कार्य क्षेत्र: पूर्व 400 मीटर धावक
उपलब्धियां: 1958 के एशियाई खेलों में 200 मी व 400 मी में स्वर्ण पदक, 1958 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्वर्ण पदक, 1962 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक
मिलखा सिंह आज तक भारत के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित धावक हैं। इन्होने रोम के 1960 ग्रीष्म ओलंपिक और टोक्यो के 1964 ग्रीष्म ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया था। उनको “उड़न सिख” का उपनाम दिया गया था। 1960 के रोम ओलंपिक खेलों में उन्होंने पूर्व ओलंपिक कीर्तिमान को ध्वस्त किया लेकिन पदक से वंचित रह गए। इस दौड़ के दौरान उन्होंने ऐसा राष्ट्रिय कीर्तिमान स्थापित किया जो लगभग 40 साल बाद जाकर टूटा।
प्रारंभिक जीवन
मिल्खा सिंह का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब में एक सिख राठौर परिवार में 20 नवम्बर 1929 को हुआ था। अपने माँ-बाप की कुल 15 संतानों में वह एक थे। उनके कई भाई-बहन बाल्यकाल में ही गुजर गए थे। भारत के विभाजन के बाद हुए दंगों में मिलखा सिंह ने अपने माँ-बाप और भाई-बहन खो दिया। अंततः वे शरणार्थी बन के ट्रेन द्वारा पाकिस्तान से दिल्ली आए। दिल्ली में वह अपनी शदी-शुदा बहन के घर पर कुछ दिन रहे। कुछ समय शरणार्थी शिविरों में रहने के बाद वह दिल्ली के शाहदरा इलाके में एक पुनर्स्थापित बस्ती में भी रहे।
ऐसे भयानक हादसे के बाद उनके ह्रदय पर गहरा आघात लगा था। अपने भाई मलखान के कहने पर उन्होंने सेना में भर्ती होने का निर्णय लिया और चौथी कोशिश के बाद सन 1951 में सेना में भर्ती हो गए। बचपन में वह घर से स्कूल और स्कूल से घर की 10 किलोमीटर की दूरी दौड़ कर पूरी करते थे और भर्ती के वक़्त क्रॉस-कंट्री रेस में छठे स्थान पर आये थे इसलिए सेना ने उन्हें खेलकूद में स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था।
धावक के तौर पर करियर
सेना में उन्होंने कड़ी मेहनत की और 200 मी और 400 मी में अपने आप को स्थापित किया और कई प्रतियोगिताओं में सफलता हांसिल की। उन्होंने सन 1956 के मेर्लबोन्न ओलिंपिक खेलों में 200 और 400 मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अनुभव न होने के कारण सफल नहीं हो पाए लेकिन 400 मीटर प्रतियोगिता के विजेता चार्ल्स जेंकिंस के साथ हुई मुलाकात ने उन्हें न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि ट्रेनिंग के नए तरीकों से अवगत भी कराया।
इसके बाद सन 1958 में कटक में आयोजित राष्ट्रिय खेलों में उन्होंने 200 मी और 400 मी प्रतियोगिता में राष्ट्रिय कीर्तिमान स्थापित किया और एशियन खेलों में भी इन दोनों प्रतियोगिताओं में स्वर्ण पदक हासिल किया। साल 1958 में उन्हें एक और महत्वपूर्ण सफलता मिली जब उन्होंने ब्रिटिश राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक हासिल किया। इस प्रकार वह राष्ट्रमंडल खेलों के व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले स्वतंत्र भारत के पहले खिलाडी बन गए। इसके बाद उन्होंने सन 1960 में पाकिस्तान प्रसिद्ध धावक अब्दुल बासित को पाकिस्तान में पिछाडा जिसके बाद जनरल अयूब खान ने उन्हें ‘उड़न सिख’ कह कर पुकारा।
रोम ओलिंपिक खेल, 1960
रोम ओलिंपिक खेल शुरू होने से कुछ वर्ष पूर्व से ही मिल्खा अपने खेल जीवन के सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में थे और ऐसा माना जा रहा था की इन खेलों में मिल्खा पदक जरूर प्राप्त करेंगे। रोम खेलों से कुछ समय पूर्व मिल्खा ने फ्रांस में 45.8 सेकंड्स का कीर्तिमान भी बनाया था। 400 में दौड़ में मिल्खा सिंह ने पूर्व ओलिंपिक रिकॉर्ड तो जरूर तोड़ा पर चौथे स्थान के साथ पदक से वंचित रह गए। 250 मीटर की दूरी तक दौड़ में सबसे आगे रहने वाले मिल्खा ने एक ऐसी भूल कर दी जिसका पछतावा उन्हें आज भी है। उन्हें लगा की वो अपने आप को अंत तक उसी गति पर शायद नहीं रख पाएंगे और पीछे मुड़कर अपने प्रतिद्वंदियों को देखने लगे जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और वह धावक जिससे स्वर्ण की आशा थी कांस्य भी नहीं जीत पाया। मिल्खा को आज तक उस बात का मलाल है। इस असफलता से सिंह इतने निराश हुए कि उन्होंने दौड़ से संन्यास लेने का मन बना लिया पर बहुत समझाने के बाद मैदान में फिर वापसी की।
इसके बाद 1962 के जकार्ता में आयोजित एशियन खेलों में मिल्खा ने 400 मीटर और 4 X 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने 1964 के टोक्यो ओलिंपिक खेलों में भाग लिया और उन्हें तीन स्पर्धाओं (400 मीटर, 4 X 100 मीटर रिले और 4 X 400 मीटर रिले) में भाग लेने के लिए चुना गया पर उन्होंने 4 X 400 मीटर रिले में भाग लिया पर यह टीम फाइनल दौड़ के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर पायी।
मिल्खा द्वारा रोम ओलिंपिक में स्थापित राष्ट्रिय कीर्तिमान को धावक परमजीत सिंह ने सन 1998 में तोड़ा।
बाद का जीवन
सन 1958 के एशियाई खेलों में सफलता के बाद सेना ने मिल्खा को ‘जूनियर कमीशंड ऑफिसर’ के तौर पर पदोन्नति कर सम्मानित किया और बाद में पंजाब सरकार ने उन्हें राज्य के शिक्षा विभाग में ‘खेल निदेशक’ के पद पर नियुक्त किया। इसी पद पर मिल्खा सन 1998 में सेवानिवृत्त हुए।
वर्ष 1958 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया पर मिल्खा ने सन 2001 में भारत सरकार द्वारा ‘अर्जुन पुरस्कार’ के पेशकश को ठुकरा दिया।
मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में जीते सारे पदकों को राष्ट्र के नाम कर दिया। शुरू में उन्हें जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में रखा गया था पर बाद में उन्हें पटियाला के एक खेल म्यूजियम में स्थानांतरित कर दिया गया। वर्ष 2012 में उन्होंने रोम ओलिंपिक के 400 मीटर दौड़ में पहने जूते एक चैरिटी की नीलामी में दे दिया।
वर्ष 2013 में मिल्खा ने अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ मिलकर अपनी आत्मकथा ‘The Race of My Life’ लिखी। इसी पुस्तक से प्रेरित होकर हिंदी फिल्मों के मशहूर निर्देशक राकेश ओम प्रकाश मेहरा ने ‘भाग मिल्खा भाग’ नामक फिल्म बनायी। इस फिल्म में मिल्खा का किरदार मशहूर अभिनेता फरहान अख्तर ने निभाया।
निजी जीवन
मिल्खा सिंह ने भारतीय महिला वॉलीबॉल के पूर्व कप्तान निर्मल कौर से सन 1962 में विवाह किया। कौर से उनकी मुलाकात सन 1955 में श्री लंका में हुई थी। इनके तीन बेटियां और एक बेटा है। इनका बेटा जीव मिल्खा सिंह एक मशहूर गोल्फ खिलाडी है। सन 1999 में मिल्खा ने शहीद हवलदार बिक्रम सिंह के सात वर्षीय पुत्र को गोद लिया था। मिल्खा सम्प्रति में चंडीगढ़ शहर में रहते हैं।

सोमवार, 7 अक्टूबर 2019

दीपावली पर संयोग


27 अक्टूबर की दोपहर 12.23 बजे कार्तिक अमावस्या शुरू हो जाएगी, जो 28 अक्टूबर की सुबह 9.07 बजे तक ही रहेगी


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जीवन मंत्र डेस्क इस बार दीपावली का लक्ष्मी पूजन 27 अक्टूबर को रूप चौदस की रात में होगा। ऐसा इसलिए हो रहा है कि चौदस दोपहर 12.23 बजे तक ही है। इसके बाद अमावस्या लगेगी, जो 28 को सुबह 9.07 बजे तक रहेगी। दीपावली का लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल युक्त अमावस्या में होता है। प्रदोष काल 27 को शाम 5.48 से रात 8.21 बजे तक रहेगा। इस समय अमावस्या और प्रदोष काल होने से 27 की रात ही लक्ष्मी पूजन किया जाएगा। 28 को उदयकाल में अमावस्या सुबह 9.07 बजे तक है तथा इस दिन सोमवार है, इसलिए सोमवती अमावस्या का स्नान सुबह ही समाप्त हो जाएगा। इसके बाद गोवर्धन पूजा और अन्नकूट उत्सव होंगे।

दीपावली का ऐसा संयोग तिथियों के क्रम के कारण हो रहा है। ज्योतिषियों का मानना है कि दीपावली पर लक्ष्मी पूजन प्रदोष काल में किया जाना सर्वश्रेष्ठ रहता है। यह मुहूर्त 27 की रात है। इसलिए उदयकाल की अमावस्या 28 को होने के बावजूद पूजन नहीं होगा। पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार दीपावली को लेकर कहीं कोई मतभेद नहीं है। सभी लोग 27 अक्टूबर की रात प्रदोष काल में लक्ष्मी का पूजन करें। पं. श्यामनारायण व्यास कहते हैं- 27 को चौदस उदयकाल में होने के बाद दोपहर से अमावस्या लग जाएगी जो 28 को सुबह तक रहेगी। उदियात तिथि के अनुसार अमावस्या 28 को रहेगी लेकिन लक्ष्मी पूजन के लिए मान्य प्रदोष काल 27 की रात होने से उस रात ही पूजन होगा। जबकि स्नान की अमावस्या 28 को मनाई जाएगी क्योंकि उदयकाल में अमावस्या है।

इस बार 15 दिन के श्राद्ध, 28 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या

    ज्योतिषियों के अनुसार 12 सितंबर को अनंत चतुर्दशी पर सुकर्मा योग है। इसलिए चौदस पर अनंत भगवान अच्छे कर्म करने वालों को इच्छित फल देंगे। 13 सितंबर से श्राद्ध पक्ष शुरू होगा। इस बार श्राद्ध 15 दिन के हैं। त्रियोदशी (किन्हीं पंचांग में चौदस) तिथि क्षय होने से सर्व पितृ अमावस्या 28 सितंबर को रहेगी। इस दिन त्रिवेणी पर शनिश्चरी स्नान भी होगा। ज्योतिषविद् अर्चना सरमंडल के अनुसार श्राद्धपक्ष में सिद्धवट व रामघाट पर पितृ कर्म कराने की मान्यता है। देश के चार वटवृक्ष अनादि हैं जिनमें उज्जैन का सिद्धवट जहां पितृ कर्म कराते हैं।

    9 दिन की नवरात्रि, 7 अक्टूबर को महानवमी

      पं. मनीष शर्मा के अनुसार नवरात्रि 29 सिंतबर से शुरू होगी तथा 7 अक्टूबर को महानवमी होगी। 9 दिन देवी आराधना की जाएगी। नवरात्रि के दौरान विभिन्न योगों मे देवी का पूजन होगा।

      यह त्योहार विशेष योग में

        8 अक्टूबर को दशहरा रवियोग में मनेगा। रात 8 बजे रवि योग लगेगा। इस दिन बुद्ध जंयती भी है। 13 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा, वाल्मीकि जयंती रहेगी। 8 नवंबर को देवप्रबोधनी एकादशी होगी।


        Happy Deepavali हैप्पी दिवाली शुभ दीपावली :motivate

        On Deepavali 2019, here are some Diwali images, greetings, wishes and Whatsapp messages that you can send to your friends and family.HAPPY DIWALI


        Happy Deepavali 2019: Diwali will be observed on November 7.
        Deepavali or Diwali is the festival of lights celebrated across India and the world. The festival symbolizes victory of light over darkness, good over evil and knowledge over ignorance. The world "deepavali" means "row or series of lights". In the Hindu mythology as depicted in the holy epic Ramayana, Diwali is the day Lord Rama, Sita, Lakshmana and Hanuman reached Ayodhya after an exile of 14 years and defeating demon king Ravana. On this day Goddess Lakshmi, the goddess of prosperity and wealth, is worshipped.  According to Vedic legend, on the night of Diwali, Goddess Lakshmi married Lord Vishnu. Lord Ganesha, the elephant-headed son of Goddess Parvati and Lord Shiva, also remembered as the "remover of obstacles".
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        Happy Deepavali: Diwali is celebrated as victory of good over evil.
        On Deepavali 2019, here are some Diwali images, greetings, wishes and Whatsapp images that you can send to your friends and family:
        May Goddess Lakshmi bless you and your family in abundance. May the year be a prosperous one for you. Happy Diwali.
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        Happy Diwali: Diwali is celebrated as victory of knowledge over ignorance.

        Deepavali ka tyohar aapke jeewan mein laaye khushiyon ki bahaar.. Deepavali ki dher saari shubhkamnaayein!
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        Happy Diwali: May this Diwali brighten up your day and light up your life!
        Wish you and your family a very very Happy Diwali! May the lights guide you and brightness never leave your side.
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        Happy Diwali: Celebrate the day with friends and family.
        Deepak ki tarah har pal jhilmilati rahe aapki zindagi... roshan rahe, aabad rahe, yahi hai hamari dua aapke liye...!
        May the colours of rangoli fill up your life with brightness and magic! Happy Diwali to you.
        Deep jalao deep jalo aaj Diwali re,
        Khushi khushi sab hanste jao, aaj Diwali re!
        Happy Diwali to all!
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        Happy Diwali: Wish you the best this Deepavali!
        Diwali is a day to cherish with your loved ones. May you have a great time with your family and friends Wishing you the very best this Diwali...
        Khushiyaan aapke kadam choomein, barkat aur siddhi aapko prapt ho. Iss Deepavali, aapki sab manokaamnayein purn hon! Diwali Mubaarak.

        मंगलवार, 1 अक्टूबर 2019

        डॉ हरबर्ट क्लेबर

        जानिए कौन हैं डॉ हरबर्ट क्लेबर, जिनकी उपलब्धियों को समर्पित है आज का गूगल-डूडल:knowledge

        डूडल में एक डॉक्टर दिखाई दे रहा है। दूसरी तरफ एक मरीज बैठा हुआ है जिसकी समस्या को डॉक्टर एक नोट पैड पर लिख रहे हैं। मरीज के पीछे कुछ चित्र हैं जिसमें व्यक्ति को नशे की लत से बाहर निकलते दिखाया गया है।
        मनोचिकित्सक और नशे की लत से छुटकारा दिलाने में अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल करने वाले डॉ हरबर्ट क्लेबर पर गूगल ने आज का डूडल समर्पित किया है। यह सम्मान उनके प्रतिष्ठित नेशनल एकेडमी ऑफ मेडिसिन के लिए चुने जाने की 23वीं वर्षगांठ पर किया गया है। इस डूडल को मैसाचुसेट्स के कलाकार जैरेट जे. क्रोसोज्का ने बनाया है।
        डूडल में एक डॉक्टर दिखाई दे रहा है। दूसरी तरफ एक मरीज बैठा हुआ है जिसकी समस्या को डॉक्टर एक नोट पैड पर लिख रहे हैं। मरीज के पीछे कुछ चित्र हैं जिसमें व्यक्ति को नशे की लत से बाहर निकलते दिखाया गया है।
        डॉ क्लेबर ने यह पता लगाने की कोशिश की कि व्यक्ति को नशे की लत क्यों लगती है और इनसे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है। ये मूलरूप से अमेरिका के निवासी थे। इनका जन्म 19 जून 1934 को हुआ था। इन्होंने येल यूनिवर्सिटी में ड्रग्स डिपेंडेंस यूनिट की स्थापना की थी।
        डॉ क्लेबर को अमेरिका के सबसे बेहतरीन मनोचिकित्सकों में से एक माना जाता है। उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।

        लाल बहादुर शास्त्री

        Lal Bahadur Shastri: लाल बहादुर शास्त्री, जानिए उनसे जुड़ी 10 बातें:knowledge


        Lal Bahadur Shastri Jayanti: लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे थे
        नई दिल्ली: Lal Bahadur Shastri Jayanti: देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastriकी जयंती 2 अक्टूबर (2 October) को मनाई जाती हैलाल बहादुर शास्त्री ने अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में समर्पित कर दिया थाशास्त्री का जन्म उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में दो अक्टूबर, 1904 को शारदा प्रसाद और रामदुलारी देवी के घर हुआ थादेश की आजादी में लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri)  का खास योगदान हैसाल1920 में शास्त्री (Shastri) भारत की आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए थेस्वाधीनता संग्राम के जिन आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन, 1930 का दांडी मार्च और 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन उल्लेखनीय हैंशास्त्री ने ही 'जय जवानजय किसानका नारा दिया थाआइये जानते हैं
         लाल बहादुर शास्त्री से जुड़ी 10 बातें....
        पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था.  जब शास्त्री केवल डेढ़ वर्ष के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था.
        लाल बहादुर शास्त्री को चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था ताकि वे उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें. घर पर सब उन्हें नन्हे कहकर पुकारते थे. वे कई मील की दूरी नंगे पांव ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहां तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थी तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था.
        लाल बहादुर शास्त्री जब केवल 11 वर्ष के थे तब से ही उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था. 16 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और गांधी जी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए.
        लाल बहादुर काशी विद्या पीठ में शामिल हुए. विद्या पीठ की ओर से उन्हें दी गई प्रदत्त स्नातक की डिग्री का नामशास्त्री' था, और यही नाम आगे उनके नाम के साथ जुड़ गया और उनका पूरा नाम लाल बहादुर शास्त्री हो गया .
        महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के चलते वह कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश जेलों में रहे थे.
        आजादी के बाद वे 1951 में नई दिल्ली गए एवं केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला. वह रेल मंत्री, परिवहन एवं संचार मंत्री, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री रहे.
        1964
        में जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बनेउनके शासनकाल में 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ. उस समय देश में भयंकर सूखा पड़ा और खाने की चीजों को निर्यात किया जाने लगा. संकट को टालने के लिए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की. साथ ही कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए उन्होंने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया.
        अपने गुरु महात्मा गांधी के ही लहजे में एक बार उन्होंने कहा था – “मेहनत प्रार्थना करने के समान है.” महात्मा गांधी के समान विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं.
        लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था, ''जो शासन करते हैं उन्हें देखना चाहिए कि लोग प्रशासन पर किस तरह प्रतिक्रिया करते हैं. अंतत: जनता ही मुखिया होती है.''
        उन्होंने 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में अंतिम सांस ली थी. 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद (Tashkent) में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद (11 जनवरीलाल बहादुर शास्त्री की अचानक मृत्यु हो गई. कुछ लोग उनकी मृत्यु को आज भी एक रहस्य के रूप में देखते हैं.